खुद को बेहतर कैसे बनाएं? | दूसरों की आलोचना से ज़्यादा ज़रूरी है आत्म-सुधार.
मैंने आपके लिए एक कहानी लिखी है जो इस बात पर आधारित है कि दूसरों को राह दिखाना अपने भीतर झाँकने से ज़्यादा आसान होता है। यह कहानी रेहान नाम की एक सहकर्मी के बारे में है जो दूसरों के काम में कमियाँ निकालने में माहिर, लेकिन बाद में उसे अपनी कमज़ोरियों का एहसास हुआ और उसने खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया। इस कहानी का कोई विशेष पाठक आयु वर्ग नहीं है।
मुंबई की भागती-दौड़ती सड़कों पर, जहाँ हर कोई अपनी धुन में दौड़ रहा था, वहीं एक युवा आर्किटेक्ट, रेहान, भी अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहा था। रेहान को हमेशा दूसरों की इमारतों में कमियाँ निकालना आसान लगता था। वह किसी भी डिज़ाइन को देखकर तुरंत बता देता था कि कहाँ क्या गलत है और उसे कैसे सुधारा जा सकता है।

ऑफिस में भी उसकी यही आदत थी। जब भी कोई नया प्रोजेक्ट आता, रेहान सबसे पहले दूसरों के विचारों में खामियां निकालता। "यह पिलर यहाँ सही नहीं है," या "इस बालकनी का एंगल ठीक नहीं है," वह हमेशा अपनी राय देने को तैयार रहता था। उसकी राय अक्सर सही होती थी, लेकिन उसका तरीका कभी-कभी दूसरों को चुभ जाता था।

रेहान हमेशा की तरह दूसरों के डिज़ाइनों में सुधार सुझा रहा था। "इस लॉबी को और खुला होना चाहिए," या "पार्किंग की व्यवस्था और बेहतर हो सकती है।" उसकी सलाहें कभी खत्म नहीं होती थीं। टीम के सदस्य उसकी बातों को सुनते, लेकिन धीरे-धीरे उनके चेहरे पर थकान और चिड़चिड़ापन दिखने लगा।

प्रोजेक्ट की डेडलाइन करीब आ रही थी और तनाव बढ़ता जा रहा था। एक शाम, जब सब देर तक काम कर रहे थे, तो टीम लीडर, प्रिया, ने रेहान से पूछा, "रेहान, तुमने दूसरों के डिज़ाइनों पर बहुत काम किया है। लेकिन तुम्हारा अपना डिज़ाइन कहाँ है? इस प्रोजेक्ट में तुम्हारा मुख्य योगदान क्या है?"

प्रिया के सवाल ने रेहान को चौंका दिया। वह थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। उसने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं था। वह हमेशा दूसरों की कमियां निकालने में इतना व्यस्त था कि उसने अपने खुद के काम पर ध्यान ही नहीं दिया था। उसके चेहरे पर पहली बार बेचैनी और आत्म-चिंतन के भाव थे।

उस रात, रेहान घर लौटकर भी सो नहीं पाया। प्रिया के शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे। उसने अपने पुराने डिज़ाइनों को देखा, लेकिन उसे उनमें कुछ खास नहीं दिखा। उसे एहसास हुआ कि वह दूसरों की गलतियों सुधारने में इतना माहिर हो गया था कि खुद कुछ नया बनाना भूल गया था।

अगले कुछ दिनों तक रेहान शांत रहा। उसने दूसरों को सलाह देना बंद कर दिया और अपनी मेज पर बैठकर अपने खुद के विचारों पर काम करना शुरू किया। उसने अपनी पुरानी गलतियों से सीखा और एक नया, अनोखा डिज़ाइन बनाना शुरू किया।

जब उसने अपना डिज़ाइन टीम के सामने पेश किया, तो सब हैरान रह गए। यह एक शानदार और व्यावहारिक डिज़ाइन था, जिसमें रेहान की अपनी सोच और मेहनत साफ दिख रही थी। टीम ने उसके काम की सराहना की और उसके साथ मिलकर उस डिज़ाइन को और बेहतर बनाया।

रेहान ने सीखा कि दूसरों की कमियाँ निकालना आसान है, लेकिन खुद को बेहतर बनाना ही असली चुनौती है। उसने यह भी समझा कि अपनी ऊर्जा दूसरों को सुधारने में लगाने की बजाय, उसे खुद को निखारने में लगाना चाहिए। मुंबई की भागदौड़ में, अब रेहान एक ऐसा आर्किटेक्ट था जो अपनी बनाई इमारतों से बात करता था, न कि सिर्फ दूसरों की कमियां निकालता था।

यह एक महत्वपूर्ण सीख देती है कि दूसरों की आलोचना करने से ज़्यादा ज़रूरी है खुद में सुधार करना। मुंबई की भागदौड़ में, अब रेहान एक ऐसा आर्किटेक्ट बन गया था जिसकी इमारतें खुद उसकी मेहनत और रचनात्मकता की कहानी कहती थीं।" या "अब रेहान सिर्फ दूसरों की कमियाँ नहीं निकालता था, बल्कि खुद की बनाई इमारतों से बात करता था।"