खुद को बेहतर कैसे बनाएं? | दूसरों की आलोचना से ज़्यादा ज़रूरी है आत्म-सुधार.

आलोचना नहीं, रचनात्मकता: एक आर्किटेक्ट की कहानी

खुद को बेहतर कैसे बनाएं? | दूसरों की आलोचना से ज़्यादा ज़रूरी है आत्म-सुधार.

मैंने आपके लिए एक कहानी लिखी है जो इस बात पर आधारित है कि दूसरों को राह दिखाना अपने भीतर झाँकने से ज़्यादा आसान होता है। यह कहानी रेहान नाम की एक सहकर्मी के बारे में है जो दूसरों के काम में कमियाँ निकालने में माहिर, लेकिन बाद में उसे अपनी कमज़ोरियों का एहसास हुआ और उसने खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया। इस कहानी का कोई विशेष पाठक आयु वर्ग नहीं है।

मुंबई की भागती-दौड़ती सड़कों पर, जहाँ हर कोई अपनी धुन में दौड़ रहा था, वहीं एक युवा आर्किटेक्ट, रेहान, भी अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहा था। रेहान को हमेशा दूसरों की इमारतों में कमियाँ निकालना आसान लगता था। वह किसी भी डिज़ाइन को देखकर तुरंत बता देता था कि कहाँ क्या गलत है और उसे कैसे सुधारा जा सकता है।

An illustration shows a young man sitting at a desk in an office, looking thoughtful with his fingers on his temples. He is wearing a light blue button-down shirt and a wristwatch. There's a notebook on the desk in front of him.

ऑफिस में भी उसकी यही आदत थी। जब भी कोई नया प्रोजेक्ट आता, रेहान सबसे पहले दूसरों के विचारों में खामियां निकालता। "यह पिलर यहाँ सही नहीं है," या "इस बालकनी का एंगल ठीक नहीं है," वह हमेशा अपनी राय देने को तैयार रहता था। उसकी राय अक्सर सही होती थी, लेकिन उसका तरीका कभी-कभी दूसरों को चुभ जाता था।

An illustration shows a woman in a green blazer with her arms crossed, talking to a man in a light blue shirt. They are standing in an open-plan office. Another woman is seated nearby, looking at the conversation.

रेहान हमेशा की तरह दूसरों के डिज़ाइनों में सुधार सुझा रहा था। "इस लॉबी को और खुला होना चाहिए," या "पार्किंग की व्यवस्था और बेहतर हो सकती है।" उसकी सलाहें कभी खत्म नहीं होती थीं। टीम के सदस्य उसकी बातों को सुनते, लेकिन धीरे-धीरे उनके चेहरे पर थकान और चिड़चिड़ापन दिखने लगा।

An illustration of a young man in a light blue shirt and dark pants standing on a balcony, looking over a busy city street filled with yellow taxis and tall buildings.

प्रोजेक्ट की डेडलाइन करीब आ रही थी और तनाव बढ़ता जा रहा था। एक शाम, जब सब देर तक काम कर रहे थे, तो टीम लीडर, प्रिया, ने रेहान से पूछा, "रेहान, तुमने दूसरों के डिज़ाइनों पर बहुत काम किया है। लेकिन तुम्हारा अपना डिज़ाइन कहाँ है? इस प्रोजेक्ट में तुम्हारा मुख्य योगदान क्या है?"

An illustration of a man and a woman in an office. The man, wearing a light blue shirt, is pointing at a whiteboard with architectural drawings. The woman, in a green blazer, is standing beside him, smiling.

प्रिया के सवाल ने रेहान को चौंका दिया। वह थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। उसने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं था। वह हमेशा दूसरों की कमियां निकालने में इतना व्यस्त था कि उसने अपने खुद के काम पर ध्यान ही नहीं दिया था। उसके चेहरे पर पहली बार बेचैनी और आत्म-चिंतन के भाव थे।

An illustration of a young man sitting at an office desk, sketching in a notebook with a pen. He is wearing a light blue button-down shirt and a wristwatch. There are several colored pens on the desk next to his notebook.

उस रात, रेहान घर लौटकर भी सो नहीं पाया। प्रिया के शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे। उसने अपने पुराने डिज़ाइनों को देखा, लेकिन उसे उनमें कुछ खास नहीं दिखा। उसे एहसास हुआ कि वह दूसरों की गलतियों सुधारने में इतना माहिर हो गया था कि खुद कुछ नया बनाना भूल गया था।

An illustration shows a young man in a light blue shirt pointing at a computer monitor to a group of colleagues in an open-plan office. The monitor displays what appears to be architectural designs.

अगले कुछ दिनों तक रेहान शांत रहा। उसने दूसरों को सलाह देना बंद कर दिया और अपनी मेज पर बैठकर अपने खुद के विचारों पर काम करना शुरू किया। उसने अपनी पुरानी गलतियों से सीखा और एक नया, अनोखा डिज़ाइन बनाना शुरू किया।

An illustration of a young man standing on a balcony at dusk or night, holding a notebook, and looking out at a city skyline with buildings and a busy street below.

जब उसने अपना डिज़ाइन टीम के सामने पेश किया, तो सब हैरान रह गए। यह एक शानदार और व्यावहारिक डिज़ाइन था, जिसमें रेहान की अपनी सोच और मेहनत साफ दिख रही थी। टीम ने उसके काम की सराहना की और उसके साथ मिलकर उस डिज़ाइन को और बेहतर बनाया।

An illustration of a man and a woman sitting together at a table in an office, examining a large map. The man is pointing at the map with a pen and has his hand on his chin, while the woman is also pointing with a pen and smiling.

रेहान ने सीखा कि दूसरों की कमियाँ निकालना आसान है, लेकिन खुद को बेहतर बनाना ही असली चुनौती है। उसने यह भी समझा कि अपनी ऊर्जा दूसरों को सुधारने में लगाने की बजाय, उसे खुद को निखारने में लगाना चाहिए। मुंबई की भागदौड़ में, अब रेहान एक ऐसा आर्किटेक्ट था जो अपनी बनाई इमारतों से बात करता था, न कि सिर्फ दूसरों की कमियां निकालता था।

An illustration of two men in an office. One man in a light blue shirt is gesturing with his hands while talking to a man who is leaning forward, listening intently. They are standing in an office with computer monitors in the foreground.

यह एक महत्वपूर्ण सीख देती है कि दूसरों की आलोचना करने से ज़्यादा ज़रूरी है खुद में सुधार करना। मुंबई की भागदौड़ में, अब रेहान एक ऐसा आर्किटेक्ट बन गया था जिसकी इमारतें खुद उसकी मेहनत और रचनात्मकता की कहानी कहती थीं।" या "अब रेहान सिर्फ दूसरों की कमियाँ नहीं निकालता था, बल्कि खुद की बनाई इमारतों से बात करता था।"

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